म्युचुअल फंड क्या है? Mutual Funds kya hai – Comparison, tax benefits, expense ratio, nav and more

ऐसे निवेशक जिनके पास समय का अभाव है, सही चुनाव करने की क्षमता और समझ नहीं है और जो बैंक से अधिक और मुद्रास्फीति से उच्च दर पाने की अपेक्षा करते हैं, उनके लिए म्युचुअल फंड उपयुक्त उत्पाद हो सकता है। 

एक निवेशक का प्रमुख लक्ष्य अपने धन को सुरक्षित रख कर उसे बढ़ाना एवं आवश्यकता पड़ने पर उपयोग में लाना होता है। डिजिटल क्रांति एवं उपयोग की सुगमता से विभिन्न उत्पादों में निवेश अत्यंत सरल बन गया है और इसका प्रमुख रूप से जिस उत्पाद को लाभ हुआ है, वह है – म्युचुअल फंड।  

म्युचुअल फंड क्या है ?

एक छोटे निवेशक को किसी निवेश सम्बन्धी चुनाव, शोध और प्रबंधन करने का न तो अधिक ज्ञान होता है और न ही समय। किन्तु यदि बहुत सारे ऐसे छोटे निवेशक एक साथ आकर धन एकत्र करें तो यह बड़ी राशि में परिवर्तित हो जाती है। इस राशि को वे किसी पेशेवर प्रबंधक को या ‘फंड मैनेजर’ को प्रदान करते हैं जो उसे विविध परिसम्पत्तियों में निवेश करता है और निवेशकों के लिए रिटर्न अर्जित करता है। ये परिसंपत्तियां शेयर, बांड, सोने और अन्य वित्तीय साधनों में से कुछ, या सभी हो सकते हैं। 

म्यूचुअल फंड के निवेश प्रकार

म्यूचुअल फंड्स को विभिन्न पहलुओं के अनुसार एक विस्तृत श्रृंखला में वर्गीकृत किया जाता है, हालांकि आम तौर पर जिन सम्पत्तियों में ये निवेश करते हैं, वे हैं –

1 इक्विटी

इनमें कंपनियों के शेयरों में पैसा लगाया जाता है और इनका प्रदर्शन उक्त कंपनियों के प्रदर्शन पर आधारित होता है। इनमें जोखिम और रिटर्न – दोनों की सम्भावना अधिक रहती है।  

2 डेट

इनमें निश्चित आय परिसम्पत्तियों के समूह में पैसा लगाया जाता है जैसे सरकारी प्रतिभूतियां, कॉरपोरेट बांड, नगरपालिका बांड, ट्रेजरी बिल आदि।ये नियमित आय का स्त्रोत प्रदान करते हैं और इनमें रिटर्न की दर पहले से ज्ञात होती है।

डेट का अर्थ है -इसके जारीकर्ता को धन उधार देना, इसलिए इसमें कुछ हद तक जोखिम शामिल है, किन्तु इक्विटी की तुलना में अपेक्षाकृत कम।

हाइब्रिड

इनमें इक्विटी और डेट का मिश्रण रहता है जो निर्धारित अनुपात के अनुसार घटाया या बढ़ाया जा सकता है।फंड मैनेजर बाज़ार की स्तिथि के अनुसार डेट और इक्विटी को संतुलित करते हैं।ये एक ही विकल्प से दोनों परिसंपत्ति वर्गों में निवेश करने का लाभ देते हैं।

इनमें डेट फंड की तुलना में अधिक जोखिम होता है लेकिन इक्विटी फंड की तुलना में कम।

म्यूचुअल फंड की संरचना

म्युचुअल फंड की संरचना इसे समझने में सरल, निवेश करने में सुगम व छोटे निवेशकों के हित में बनाती है। इसकी स्थापना में तीन प्रतिभागी होते हैं –

1 स्पांसर या प्रायोजक

स्पांसर वह कंपनी (या प्रमोटर) है जो म्यूचुअल फंड स्थापित करती है। इनका उद्देश्य लाभ कमाना होता है और ये ट्रस्ट एवं एसेट मैनेजमेंट कंपनी की स्थापना करते हैं। कौन सी कंपनी प्रमोटर या स्पांसर बन सकती है, ये बाज़ार नियामक सेबी द्वारा परिभाषित नियमों द्वारा ही तय होता है।  

2  ट्रस्ट

निवेशकों से एकत्रित धन ट्रस्ट के अंतर्गत आता है।स्पांसर ट्रस्ट के सदस्यों को मनोनीत करता है और ये ट्रस्टीज कहलाते हैं।ये निवेशकों के धन के संरक्षक हैं, उनके हितों का ध्यान रखते हैं और एएमसी के कार्य पर भी निगरानी रखते हैं।  

3 एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC)

एएमसी म्यूचुअल फंड का प्रबंधक है और इसका संचालन करता है। यह ट्रस्ट के लिए निवेशकों से एकत्रित धन को निवेश करता है, उसका सम्पूर्ण प्रबंधन करता है और बदले में प्रबंधन शुल्क लेता है।   

4 नियामक

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) म्यूचुअल फंडस का नियामक है और इन पर कड़ी नज़र रखता है।यह निवेशकों के हित के लिए कार्यरत है और समय- समय पर नयी नीतियां और दिशानिर्देश तैयार करता है, जिनका पालन करना म्यूचुअल फंड के लिए अनिवार्य है। 

5 फंड मैनेजर (Fund Manager)

एसेट मैनेजमेंट कंपनी फंड मैनेजर द्वारा म्यूचुअल फंड का संचालन करती है।फंड मैनेजर ही निर्णय लेता है कि पैसा कहाँ और किस अनुपात में निवेश करना है, कौन सी संपत्ति वर्ग में पैसा लगाना है और कब निकालना है। रिपोर्टिंग, सेबी दिशानिर्देशों का अनुपालन, निवेशकों के धन का संरक्षण और दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों की निगरानी – ये भी फंड मैनेजर के कार्य क्षेत्र का हिस्सा है। 

क्यों करें म्यूचुअल फंड में निवेश ?

म्यूचुअल फंड में निवेश के कुछ प्रमुख कारण हैं –

1 पेशेवर प्रबंधन

म्यूचुअल फंड्स कैसे और कहाँ निवेश करते हैं, उसमें  कुछ महत्वपूर्ण निर्णय शामिल होते हैं, जैसे स्टॉक्स में निवेश करने के लिए कंपनियों के विषय में विशेष ज्ञान, आर्थिक जगत की समझ बूझ, कंपनियों का वित्तीय प्रदर्शन और भविष्य की दिशा आदि। यह केवल पेशेवर फंड मैनेजर ही कर सकते हैं I 

2 विविधता

म्यूचुअल फंड विभिन्न परिसंपत्तियों के पोर्टफोलियो में निवेश करते हैं, इसलिए इनमें निवेश करने से विविधीकरण का लाभ मिलता है।विविधीकरण एक से अधिक विकल्पों में निवेश करके जोखिम को कम करने की एक विधि है।इससे उच्च रिटर्न अर्जित करने की संभावना भी बढ़ जाती है।छोटे निवेशकों के लिए स्वंय यह करना कठिन है। 

3 छोटा निवेश

म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए बड़ी मात्रा में बचत करने का इंतज़ार नहीं करना पड़ता। निवेशक बहुत छोटी राशि से शुरू कर सकते हैं और समय के साथ इसे बढ़ा सकते हैं। 

4 सरल एवं पारदर्शी

म्यूचुअल फंड में निवेश अत्यंत सरल है और किसी भी ऍप द्वारा घर बैठे आरम्भ किया जा सकता है।सेबी द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन म्यूचुअल फंड के लिए आवश्यक है जैसे मासिक पोर्टफोलियो प्रकटीकरण,जो इसे पारदर्शी बनाता है।  

5 टैक्स बचत (Tax saving)

टैक्स बचत वाले म्यूचुअल फंड जिन्हें इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ईलएसएस) कहा जाता है, के माध्यम से निवेशक आयकर की धारा 80 सी के अंतर्गत एक वित्त वर्ष में 1.5 लाख रु तक की राशि की छूट का दावा कर सकते हैं।   

6 लिक्विडिटी

म्यूचुअल फंड सबसे लिक्विड उत्पादों में से एक है तथा मोबाइल पर एक क्लिक से इसके कुछ भाग या पूरे निवेश को एक साथ बेचा जा सकता है। 

म्यूचुअल फंड में निवेश

निवेश आरम्भ करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि हर म्यूचुअल फंड को खरीदने के दो विकल्प होते हैं  –

डायरेक्ट प्लान और रेगुलर प्लान

डायरेक्ट प्लान (Direct plan)

निवेशक जब म्यूचुअल फंड कंपनी (वेबसाइट या एएमसी ऑफिस) से सीधे खरीदारी करते हैं, तो योजना को ‘डायरेक्ट प्लान’ कहा जाता है।

इसमें कोई ब्रोकर, वितरक या एजेंट शामिल नहीं होता और कंपनी को कमीशन या ब्रोकरेज का भुगतान नहीं करना पड़ता। इसलिए निवेशक के लिए ‘डायरेक्ट प्लान’ किफायती होता है।

रेगुलर प्लान (Regular plan)

निवेशक जब म्यूचुअल फंड भागीदारों जैसे वितरक, ब्रोकर या एजेंट के माध्यम से खरीदारी करते हैं, तो ऐसी योजना को ‘रेगुलर प्लान’ कहा जाता है। एएमसी इन भागीदारों को उनकी सेवाओं के लिए कमीशन का भुगतान करती है इसलिए ये ‘डायरेक्ट प्लान’ से महंगे होते हैं।

तुलनात्मक रूप से रेगुलर प्लान में व्यय अनुपात अधिक, एनएवी कम और रिटर्न भी कम होता है।

(यह समझना महत्वपूर्ण है कि दोनों योजनाएं संरचना में समान हैं, एक ही संपत्ति में निवेश करती हैं और एक ही फंड मैनेजर द्वारा प्रबंधित की जाती हैं)

कैसे करें म्यूचुअल फंड में निवेश ?

कुछ अन्य वित्तीय उत्पादों की तरह म्यूचुअल फंड निवेश भी दो प्रकार से किया जा सकता है –

ऑनलाइन

यह सरल प्रक्रिया है।निवेशक चुनिंदा म्यूचुअल फंड की वेबसाइट पर जाकर अथवा किसी मध्यस्थ की ऍप से निवेश आरम्भ कर सकता है। इसमें निवेशक के ई-केवाईसी आकलन एवं आवश्यक जानकारी जैसे पैन व आधार आदि के उपलब्ध होने पर तुरंत पुष्टि होती है तथा आसानी से निवेश आरम्भ किया जा सकता है।

‘फिनिटी ऍप‘ यह सुविधा प्रदान करती है और इसके माध्यम से निवेशक बिना किसी कमीशन या शुल्क के ‘डायरेक्ट’ योजना में निवेश कर सकते हैं।        

ऑफलाइन

यह म्यूचुअल फंड निवेश का पारम्परिक तरीका है। इसमें निवेशक अपने चुने हुए फंड के कार्यालय अथवा ऐसे बैंक की शाखा जहाँ उक्त फंड में निवेश उपलब्ध है, जाकर कर सकते हैं। इसमें आवेदन पत्र भरने के साथ आवश्यक दस्तावेज एवं अन्य शर्तों को पूरा करना होता है। सभी आवश्यकताओं को पूरा करने पर निवेश आरम्भ किया जा सकता है।   

म्युचुअल फंड पर टैक्स आकलन (Taxation on Mutual funds)

टैक्स आकलन से पहले यह समझना आवश्यक है कि म्यूचुअल फंड में पैसा कैसे बनता है –

1 पूंजीगत लाभ (Capital gains)

म्यूचुअल फंड द्वारा निवेशित संपत्ति वर्गों में बढ़ोतरी होने के साथ निवेशित राशि का मूल्य भी बढ़ता है और निवेशक को लाभ होता है।म्यूचुअल फंड को लाभ पर बेचने पर पूंजीगत लाभ (कैपिटल गेन) अर्जित होता है, जो यूनिट्स के अधिग्रहण मूल्य एवं बिक्री मूल्य के बीच का अंतर है।(नुकसान में बेचने पर पूंजीगत हानि होती है)

पूंजीगत लाभ दो प्रकार का होता है – 

अल्पकालिक लाभ (Short term capital gains)

इक्विटी फंड के सन्दर्भ में :

ऐसी परिस्तिथि जिसमें निवेश को 12 महीने से कम समय में बेचा गया हो  

डेट फंड के सन्दर्भ में :

ऐसी परिस्तिथि जिसमें निवेश को 36 महीने से कम समय में बेचा गया हो  

दीर्घकालिक लाभ (Long term capital gains)

इक्विटी फंड के सन्दर्भ में :

ऐसी परिस्तिथि जिसमें निवेश को 12 महीने के पश्चात बेचा गया हो 

डेट फंड के सन्दर्भ में :

ऐसी परिस्तिथि जिसमें निवेश को 36 महीने के पश्चात बेचा गया हो  

2  डिविडेंड द्वारा

म्यूचुअल फंड द्वारा अपने संचित लाभ में से लाभांश की घोषणा करने पर निवेशक को लाभांश प्राप्त होता है।यह म्यूचुअल फंड द्वारा निवेशित की गई सम्पत्तियों या प्रतिभूतियों पर अर्जित ब्याज या शेयरों पर अर्जित लाभांश के रूप में हो सकता है।

यह केवल उन निवेशकों पर लागू होता है जिन्होंने उक्त म्यूचुअल फंड के ‘लाभांश’ विकल्प को चुना है। यह भी ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि लाभांश की राशि और निश्चितता की कोई गारंटी नहीं होती।

टैक्स प्रावधान

इक्विटी म्यूचुअल फंड

अल्पकालिक लाभ होने की स्तिथि में टैक्स की दर 15% है और 4% का उपकर है। 

दीर्घकालिक लाभ की स्तिथि में 1 लाख रु तक कोई कर नहीं है। 1 लाख से ऊपर टैक्स की दर 10% है और 4% उपकर है। 

डेब्ट म्यूचुअल फंड

अल्पकालिक लाभ होने की स्तिथि में लाभ की राशि को निवेशक की आय में जोड़ कर उस पर टैक्स का आकलन किया जाता है। 

दीर्घकालिक लाभ की स्तिथि में इंडेक्सेशन के बाद टैक्स की दर 20% है। 

म्यूचुअल फंड का चयन

म्यूचुअल फंड का चुनाव करते समय निवेशक को इन तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए –

निवेश का उद्देश्य

लक्ष्य निर्धारण निवेश चयन को सरल बनाता है। यदि उद्देश्य नियमित आय है तो निवेश प्रकार अलग होगा। यदि उद्देश्य पूँजी की बढ़ोतरी है तो उसी के अनुसार चयन भी बदल जायेगा। किसी विशिष्ट उद्देश्य या लक्ष्य के साथ किया गया निवेश बेहतर निवेश निर्णय साबित होता है। निवेश का लक्ष्य नई कार, घर या अन्य बड़ी खरीद, बच्चे की उच्च शिक्षा या परिवार के साथ विदेश में छुट्टी भी हो सकता है। 

समय सीमा

निवेश की समय सीमा के दो आवश्यक पहलू हैं –

– लक्ष्य कितनी दूर है?

– क्या लक्ष्य में बदलाव संभावित है? 

बाज़ार अल्पावधि में अस्थिर हो सकते हैं लेकिन लम्बी अवधि में उच्च रिटर्न देने की क्षमता रखते हैं। लम्बी अवधि के लिए इक्विटी फंडस को उपयुक्त समझा जाता है और छोटी से मध्यम अवधि के लिए डेट फंडस को। 

जोखिम क्षमता

निवेशक को अपने द्वारा चुने गए निवेश प्रकार के साथ सहज होना चाहिए और इसके लिए जोखिम अवलोकन आवश्यक है। यह भी समझना आवश्यक है कि जोखिम और रिटर्न अक्सर एक दिशा में चलते हैं -बाज़ार आधारित निवेश में जोखिम भी अधिक है और रिटर्न की संभावना भी। वहीँ डेट म्यूचुअल फंड में जोखिम कम है और रिटर्न भी।   

टैक्स मूल्यांकन

म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले उसका टैक्स मूल्यांकन अत्यंत लाभप्रद रहता है। समय सीमा के पश्चात और समय से पहले निकासी के टैक्स मूल्यांकन में भी अंतर है।

म्यूचुअल फंड – प्रमुख शब्दावली (Important mutual fund terms to know)

म्यूचुअल फंड निवेश से सम्बंधित अक्सर इस्तेमाल की जाने वाली शब्दावली, उनका अर्थ व महत्त्व –

एयूएम – एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM)

यह निवेशकों की कुल जमा राशि और म्यूचुअल फंड एएमसी द्वारा नियंत्रित परिसंपत्तियों के आकार को दर्शाता है। निवेशकों द्वारा निवेश के पश्चात फंड मैनेजर उसे विभिन्न परिसंपत्तियों में आवंटित करता है और निवेश संबंधी सभी निर्णय लेता है। किसी भी म्यूचुअल फंड के एयूएम में निरंतर उतार-चढ़ाव दिखता रहेगा – इसका कारण है नए निवेशकों का आगमन और पुराने निवेशकों द्वारा निकासी।

एयूएम निवेश से पूर्व कुछ महत्वपूर्ण मापदंडों में से एक है जो म्यूचुअल फंड के प्रदर्शन और विश्वसनीयता की पहचान हेतु निवेशकों को ध्यान में रखना चाहिए।

एसआईपी  (सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान)

यह म्यूचुअल फंड के सन्दर्भ में सबसे अधिक उपयोग होने वाले शब्दों में से एक है। एसआईपी म्यूचुअल फंड में निवेश करने का एक मार्ग या सुविधा है जिससे निवेशक अपने चुने हुए अंतराल पर अपनी चुनी हुई राशि का निवेश कर सकते हैं। यह छोटे निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश का एक बेहतरीन विकल्प है।

एसआईपी की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि निवेशक अपने बैंक खाते को अपने निवेश खाते से जोड़ सकते हैं।निवेशक के निर्देशानुसार पूर्व-निर्धारित राशि दी गयी तिथि पर स्वचालित रूप से चुने हुए म्यूचुअल फंड में निवेशित हो जाती है। इससे निवेश के साथ अनुशासित और नियमित होने में सहायता मिलती है। 

नेट एसेट वैल्यू (एनएवी)

म्यूचुअल फंड अपने बाजार मूल्य पर खरीदा या बेचा जाता है और इसकी गणना व्यापारिक दिन के अंत में प्रति दिन की जाती है। किसी भी फंड में सभी शेयरों के बाज़ार मूल्य को जोड़ कर इसे कुल म्यूचुअल फंड इकाइयों की संख्या से विभाजित करने पर प्राप्त आंकड़ा उसका एनएवी है।

एनएवी सरल शब्दों में फंड की प्रति यूनिट कीमत है ।आमतौर पर म्यूचुअल फंड यूनिट्स 10 रु प्रति इकाई लागत के साथ आरम्भ होती हैं और परिसंपत्तियों के मूल्य में वृद्धि के साथ फंड के एनएवी के रूप में बढ़ती है।इसलिए एक स्थापित और नामी फंड का एनएवी किसी नए फण्ड की तुलना में अधिक होगा।

व्यय अनुपात (एक्सपेंस रेश्यो)

व्यय अनुपात को एक वार्षिक शुल्क के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो म्यूचुअल फंड अपने निवेशकों को दी गयी सेवाओं के लिए लेता है।इसमें प्रबंधन शुल्क, प्रशासनिक लागत, ब्रोकरेज शुल्क, कानूनी शुल्क, बिक्री और मार्केटिंग व्यय आदि शामिल हैं।

व्यय अनुपात  को दैनिक आधार पर फंड की कुल संपत्ति के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। 

निवेशक के लिए म्यूचुअल फंड से वास्तविक रिटर्न उसके कुल रिटर्न में से व्यय अनुपात घटाकर निकाला जाता है।

म्यूचुअल फंड – सशक्त परोक्ष निवेश माध्यम

बड़े निवेशकों के विपरीत छोटे निवेशकों में सीधे शेयर्स अथवा बांड्स में निवेश करने की समझ और सामर्थ्य का अभाव रहता है। प्रत्येक निवेशक के लिए एक निवेशक सलाहकार की सेवाओं का उपयोग करना भी संभव नहीं है।

इसलिए म्यूचुअल फंड सब तरह के निवेशकों के लिए इन परिसम्पत्तियों में परोक्ष रूप से निवेश करने का सबसे सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। 


करुणेश देव बैंकिंग प्रोफेशनल रह चुके हैं और इन्हें इंशोरेंस कंपनी और विदेशी बैंकों के विभिन्न विभागों में काम करने का अनुभव है। वित्तीय सलाहकार होने के साथ पर्सनल फाइनेंस और वित्तीय साक्षरता में लेखन और शिक्षण के क्षेत्र में कार्यरत हैं।अधिक से अधिक लोग ‘बेहतर और समझदार’ निवेशक बनें, यह इनका ध्येय है। 


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